क्या Vijay की G.O.A.T. ने किया निराश? पढ़ें क्यों हिंदी दर्शकों ने इसे नकारा!”

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‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ फिल्म समीक्षा: विजय की डबल रोल फिल्म में निराशाजनक प्रदर्शन

तमिल सुपरस्टार विजय की नई फिल्म ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ (G.O.A.T.) ने भले ही दर्शकों की भारी उम्मीदें बांधी थीं, लेकिन नतीजा उनकी उम्मीदों के बिलकुल विपरीत रहा। विजय का डबल रोल, रोमांचक एक्शन, और विदेशी लोकेशन के बावजूद फिल्म न तो कहानी में दम रखती है, न ही दर्शकों को बांध पाने में सफल होती है। यह फिल्म अधिक लंबी है, कई जगह पर अनावश्यक सीन डाले गए हैं, और सबसे बड़ी समस्या इसका हिंदी डब संस्करण है, जो अनुभव को खराब कर देता है।

कहानी की समीक्षा: घिसी-पिटी रॉ एजेंट की कथा

फिल्म की कहानी एक रॉ एजेंट गांधी के इर्द-गिर्द घूमती है, जो स्पेशल एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड (SATS) का सदस्य है। फिल्म की शुरुआत में गांधी को आराम की ज़िन्दगी जीते दिखाया गया है, लेकिन उसका अतीत उसे फिर से एक्शन में खींच लाता है। ये सैटअप एक फॉर्मूला बन चुका है, जो पहले भी कई बार बॉलीवुड और तमिल फिल्मों में देखा गया है। दर्शक इसे सलमान खान की ‘टाइगर’ फ्रैंचाइज़ी की यादों से जोड़ सकते हैं, जहां एक एजेंट की निजी और पेशेवर ज़िन्दगी का संघर्ष दिखाया जाता है।

हालांकि, फिल्म की कहानी में दमदार मोड़ और रोमांच का अभाव है। इंटरवल तक फिल्म तेज़ी से आगे बढ़ती है, लेकिन इंटरवल के बाद घटनाएं बिखर जाती हैं। कई दृश्य बेहद खिंचे हुए लगते हैं, विशेषकर चेज़ सीक्वेंसेज़ (पीछा करने वाले दृश्य), जो फिल्म को और बोझिल बना देते हैं। वेंकट प्रभु द्वारा लिखित और निर्देशित यह कहानी कहीं न कहीं बेजान हो जाती है और अपनी पूरी क्षमता का उपयोग नहीं कर पाती है।

निर्देशन की समीक्षा: भव्यता में खोई फिल्म

वेंकट प्रभु की निर्देशकीय शैली अक्सर तमिल दर्शकों के लिए मनोरंजक रही है, लेकिन ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ में वह भव्यता के चक्कर में असली कहानी से भटक गए हैं। फिल्म में कई विदेशी लोकेशन का इस्तेमाल किया गया है, लेकिन इन लोकेशन का कोई खास महत्व नहीं दिखता। ये लोकेशन कहानी को आगे बढ़ाने के बजाय फिल्म की गति को धीमा कर देते हैं। प्रभु ने भव्यता को प्राथमिकता दी है, लेकिन इसने फिल्म को कहानी से और दूर कर दिया है।

इसके अलावा, फिल्म में संवादों की कमी भी दिखती है। जहां एक्शन दृश्यों में प्रभावशाली संवादों की जरूरत थी, वहां फिल्म ‘बेटे को हाथ लगाने से पहले बाप से बात कर’ जैसे संवादों का अभाव है। पूरी फिल्म में कोई ऐसा पावरफुल डायलॉग नहीं है जो दर्शकों को बांध सके। इसका असर यह होता है कि फिल्म केवल विजुअल इफेक्ट्स और एक्शन पर निर्भर हो जाती है, जो अकेले दम पर फिल्म को बचाने में नाकाम रहते हैं।

विजय का डबल रोल: उम्मीद से कम प्रदर्शन

विजय ने इस फिल्म में डबल रोल निभाया है, जो उनके फैंस के लिए एक खास आकर्षण था। फिल्म में एक तरफ वह एक सीनियर एजेंट गांधी की भूमिका में हैं, वहीं दूसरी तरफ वह एक युवा किरदार भी निभाते हैं। लेकिन दुर्भाग्यवश, विजय का यह डबल रोल प्रभावशाली नहीं है। जहां उनके युवा किरदार में ऊर्जा दिखाई देती है, वहीं सीनियर एजेंट के रूप में उनका प्रदर्शन साधारण लगता है।

विजय को तमिलनाडु के राजनीति में कूदने की तैयारी करते हुए देखा जा रहा है, और इस फिल्म को भी उनकी राजनीतिक पारी के संदर्भ में देखा जा रहा है। लेकिन, ‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ से उनके प्रशंसकों को कोई विशेष राजनीतिक संदेश नहीं मिलता है। विजय का यह अभिनय कहीं न कहीं उनकी पिछली फिल्मों के मुकाबले कमज़ोर दिखाई देता है।

संगीत और एक्शन: फिल्म को कमजोर बनाता

युवान शंकर राजा द्वारा दिया गया संगीत भी फिल्म की सबसे बड़ी कमजोरियों में से एक है। न तो गाने फिल्म की गति को बनाए रखते हैं, और न ही उनमें कोई यादगार संगीत है। गाने जब आते हैं, तो कहानी का प्रवाह थम जाता है, जिससे दर्शकों का ध्यान भटकने लगता है।

फिल्म में एक्शन सीक्वेंसेज़ की भरमार है, लेकिन यह अधिक खींचे हुए लगते हैं। जहां शुरुआत में कुछ एक्शन दृश्यों ने थोड़ी रुचि जगाई थी, वहीं बाद में ये दृश्य फिल्म को कमजोर बनाते हैं। एक्शन सीन इतने लंबे हो जाते हैं कि वे च्युइंग गम की तरह फैलते जाते हैं और दर्शकों के धैर्य की परीक्षा लेने लगते हैं। इन एक्शन दृश्यों में कुछ नयापन होता तो शायद फिल्म को एक अलग पहचान मिलती, लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

हिंदी डबिंग: सबसे बड़ी निराशा

फिल्म की हिंदी डबिंग पहले से ही एक चिंता का विषय थी, और ट्रेलर में इसका संकेत भी मिल गया था। फिल्म के डायलॉग्स का हिंदी अनुवाद बेहद सतही है, और यह फिल्म के मूल भाव को व्यक्त नहीं कर पाता है। तमिल संवादों की गहराई और प्रभाव हिंदी में नहीं आ पाते हैं, जिससे हिंदी दर्शकों के लिए फिल्म का आकर्षण कम हो जाता है।

फिल्म में विदेशी लोकेशन और भव्य सेट्स होते हुए भी हिंदी दर्शक उससे खुद को जोड़ नहीं पाते, क्योंकि डायलॉग्स में वह असर नहीं आ पाता जो होना चाहिए था। हिंदी में ऐसी फिल्मों को देखते वक्त एक खास जुड़ाव की उम्मीद की जाती है, जो यहां पूरी तरह से नदारद है।

फिल्म का व्यावसायिक पक्ष

तीन सौ करोड़ रुपये के बजट में बनी इस फिल्म ने अपने सैटेलाइट और ओटीटी राइट्स के माध्यम से अपनी लागत पहले ही वसूल ली है। इसका मतलब यह है कि सिनेमाघरों से होने वाली कमाई मुनाफा ही होगी। लेकिन, फिल्म की कहानी और निर्देशन की कमजोरियों के चलते इसे बड़ी सफलता मिलने की उम्मीद कम है। तमिल में भले ही शुरुआती शोर रहा हो, लेकिन हिंदी पट्टी में यह फिल्म कमजोर प्रदर्शन करती दिख रही है।

निष्कर्ष: दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी

‘द ग्रेटेस्ट ऑफ ऑल टाइम’ केवल विजय के कट्टर प्रशंसकों के लिए ही कुछ हद तक देखी जा सकती है। फिल्म की लंबाई, कमजोर पटकथा, और हिंदी डबिंग में आई समस्याओं के कारण यह फिल्म तमिल और हिंदी दोनों ही दर्शकों के लिए खास नहीं है।

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